नारीत्व के समर्पण, आस्था और विश्वास का पर्व है महाव्रत करवा चौथ
अनिल कुमार श्रीवास्तव, उपासना डेस्क: पति के प्रति मूक समर्पण से भरा उत्तर भारत का यह पावन व्रत “करवा” नारी की आस्था का प्रतीक है। पति की दीर्घायु के लिए समूचे दिन निर्जला व्रत रहकर चन्द्र दर्शन के साथ अर्ध्य देकर पति के स्नेहिल हांथो से पत्नियां व्रत त्यागती है।
यूँ तो धार्मिक नजरिये से सात जन्मों के बंधन से बंधे जोड़ो में पति को परमेश्वर का स्थान देने वाली पत्नियां साल भर में इस तरह के तमाम व्रत रखकर पति की सलामती की दुआ करती है लेकिन करवा का इन व्रतों में अपना महत्वपूर्ण स्थान है।
उत्तर भारत के एक बड़े क्षेत्रफल में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने वाले इस पर्व से लोग एक प्रचलित कहावत के जरिये दीपोत्सव का पता लगाते हैं। गांव में प्रचलित दोहा है
“करवा है करवारी, जिनके बारहवे है देवारी”
मतलब करवा के ठीक बारह दिन बाद दीपावली पड़ती है।या यूं कह लीजिए दीप उत्सव से ठीक 12 दिन पहले शुभ करवा का आगमन होता है। इस बार यह करवा कल यानी शनिवार को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में पड़ रहा है।
कई सालों बाद बने इस अमृतसिद्धि योग में सुबह 8 बजकर 22 मिनट से अगले दिन सुबह 6 बजकर 29 मिनट तक शुभ योग रहेगा।चन्द्र दर्शन के समय रोहणी नक्षत्र में बन रहे दिव्य योग में पूजन क्रिया अति लाभकारी रहेगी और महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। सालो बाद शनिवार के दिन पड़ रही चतुर्थी व रोहिणी नक्षत्र के दुर्लभ संयोग में चंद्रोदय रात 8:21 पर होगा। इस विशेष मुहूर्त में महिलाएं सुहाग का पूर्ण श्रंगार करके पति की दीर्घायु के लिए विधिविधान से पूजा अर्चना कर पति के स्नेहिल हाथों से जल ग्रहण कर व्रत को सफल बनाएंगी।
महापर्व करवा चौथ की प्राचीन कथा
आस्था और विश्वास से भरे नारीत्व के प्रतीक के रूप में माने जाने वाले इस महापर्व के सन्दर्भ में एक प्राचीन कथा प्रचलित हैं। अमर सुहाग के महाव्रत के विषय मे प्रचलित कथा के अनुसार सात बेटो व इकलौती बेटी से भरे साहूकार के घर उसकी विवाहित इकलौती बेटी कार्तिक मास में अपने मायके आयी थी। कर्क चतुर्थी के दिन वह अपने पति की दीर्घायु के लिए इस व्रत को धरना किये थी इस दौरान भूंख प्यास से व्याकुल करवा अस्वस्थ हो गई। शाम को सातों भाई अपने दैनिक कार्य निबटा कर घर पहुंचे तो बहन की हालत देखी नही गयी और उन्होंने करवा से भोजन, जल इत्यादि ग्रहण करने का आग्रह किया। करवा ने एक न सुनी और कहा कि चन्द्र दर्शन के उपरांत ही वह भोजन ग्रहण करेगी। सबसे छोटे भाई को एक उपाय सुझा और उसने पेड़ पर चढ़ कर दिए की रोशनी जला दी। करवा को बताया कि चांद निकल आया है बहन भोजन कर लें।करवा ने अर्ध्य देकर पूजा अर्चना उपरांत जैसे ही भोजन का पहला निवाला मुह में डाला तो छींक आ गयी, दूसरे कौर में बाल निकल आया और तीसरे कौर में पति की मृत्यु की सूचना आ गयी।उसकी भाभियां सारी बात बताते हुए बताती हैं कि उसके साथ ऐसा देवता के नाराज होने से हुआ है। यह सुनने के बाद बहादुर करवा अपने पतिको पुनः जीवित कराने के संकल्प के साथ शव को रखकर उसके पास बैठ जाती है। एक साल तक देखभाल करती है और उसके ऊपर उगने वाली दूब को एकत्रित करती रहती है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष को चन्द्र दर्शन के बाद अर्ध्य देकर उसकी भाभियां जब आशीर्वाद लेने उसके पास आती है तो वह भाभियों से यम सुई के बदले पिय सुई की याचना करती है। छह भाभियां तो सिरे से मना कर देती है जब सातवी सबसे छोटी भाभी से याचना करती है तो थोड़ी ना नुकुर के बाद छोटी भाभी द्रवित तो जाती है और सुई बदलने के बाद उंगली चीर कर उसके अमृत को करवा के मुख में डाल देती है।अमृत प्रवेश के साथ ही श्री गणेश श्री गणेश उच्चारण के साथ उसका पति प्रभु की माया से जीवित हो जाता है।
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