Magh Mela 2023: क्या होता है कल्पवास और उसका महत्व! जानिए कल्पवास से जुड़ी मान्यताएं
उपासना डेस्क, प्रयागराज- कुंभ, अर्धकुंभ, महाकुंभ, माघ माह की पूर्णिमा को नदी किनारे कल्पवास करने का विधान है। हर माघ माह में प्रयाग में मेला का आयोजन होता है। माघ माह में कल्पवास का खासा महत्व होता है। कल्पवास करने से आध्यात्मिक और सांसारिक उन्नति होती है। कल्पवास क्या है और इससे जुड़ी क्या मान्यताएं हैं आओ जानते हैं सब कुछ।
कल्पवास का महत्व
इस पर्व के महत्व को समझने के लिए सबसे पहले समझें कि कल्पवास का अर्थ क्या होता है। इसका मतलब है एक माह तक संगम के तट पर रहते हुए वेदाध्ययन और ध्यान पूजा करना। इन दिनों प्रयागराज में माघ मेले का आयोजन आरंभ होने जा रहा है ऐसे में कल्पवास का महत्व अत्यधिक बढ़ गया है। कल्पवास पौष माह के 11वें दिन से प्रारंभ होकर माघ माह के 12वें दिन तक किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक कल्प जो ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होता है जितना पुण्य मिलता है।
कैसे होता है कल्पवास
कल्पवास के लिए प्रयाग में संगम के तट पर डेरा डाल कर भक्त कुछ विशेष नियम धर्म के साथ महीना व्यतीत करते हैं। कुछ लोग मकर संक्रांति से भी कल्पवास आरंभ करते हैं। मान्यता के अनुसार कल्पवास मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का जरिया माना जाता है। संगम पर माघ के पूरे महीने निवास कर पुण्य फल प्राप्त करने की इस साधना को कल्पवास कहा जाता है। कहते हैं कि कल्पवास करने वाले को इच्छित फल प्राप्त होने के साथ जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति भी मिलती है। महाभारत के अनुसार सौ साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने के फल बराबर पुण्य माघ मास में कल्पवास करने से ही प्राप्त हो जाता है। इस अवधि में साफ सुथरे श्वेत या पीले रंग के वस्त्र धारण करना उचित रहता है। शास्त्रों के अनुसार कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि हो सकती है वहीं तीन रात्रि, तीन महीना, छह महीना, छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर भी कल्पवास किया जा सकता है।
कल्पवास से जुड़ी मान्यताएं :
- कल्पवास के माध्यम से व्यक्ति धर्म, अध्यात्म और खुद की आत्मा से जुड़ता है।
- कल्पवास के दौरान शिक्षा और दीक्षा से ग्रहस्थों का जीवन सरल बनता है और वे जीवन की हर कठिनाइयों का समाधान खोज पाते हैं।
- जो भी गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर ऋषियों की या खुद की बनाई पर्ण कुटी में रहता है वह एक ही बार भोजन करता है तथा मानसिक रूप से धैर्य, अहिंसा और भक्तिभावपूर्ण रहा जाता है। इससे जीवन में अनुशासन और जिम्मेदारी का भाव विकसित होता है।
- पद्म पुराण में इसका उल्लेख मिलता है कि संगम तट पर वास करने वाले को सदाचारी, शान्त मन वाला तथा जितेन्द्रिय होना चाहिए। इससे वह बहुत पुण्य के साथ ही प्रभु की कृपा भी प्राप्त करता है।
- कल्पवासी के मुख्य कार्य है:- 1.तप, 2.होम और 3.दान। तीनों से ही आत्म विकास होता है।
- ऐसी मान्यता है कि जो कल्पवास की प्रतिज्ञा करता है वह अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है लेकिन जो मोक्ष की अभिलाषा लेकर कल्पवास करता है उसे अवश्य मोक्ष मिलता है।-मत्स्यपु 106/40
- यहां झोपड़ियों (पर्ण कुटी) में रहने वालों की दिनचर्या सुबह गंगा-स्नान के बाद संध्यावंदन से प्रारंभ होती है और देर रात तक प्रवचन और भजन-कीर्तन जैसे आध्यात्मिक कार्यों के साथ समाप्त होती है। इससे मन और चित्त निर्मल हो जाता है और व्यक्ति के सारे सांसारिक तनाव हट जाते हैं जिसके चलते वह ग्रहस्थी में नए उत्साह के साथ पुन: प्रवेश करता है।
- इस दौरान साधु संतों के सात ही कहते हैं कि देवी और देवता भी स्नान करने धरती पर आते हैं। हिमालय की कई विभूतियां भी यहां उपस्थिति रहती हैं। ऐसे आध्यात्मि माहौल में रहकर व्यक्ति खुद का धन्य पाता है।
- कल्पवास में नियम से रहता से सभी प्रकार के रोग और शोक मिट जाते हैं। जिसके चलते व्यक्ति लंबी आयु पाता है।
- माना जाता है कि इस समय गंगा समेत पवित्र नदियों की धारा में अमृत प्रवाहित होता है। इस मौके पर स्नान करने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है और शरीर में एंटीबॉडीज का निर्माण भी होता है। यह एक प्रकार से कुदरती टीकाकरण है। जो हर तीन साल में लगता है क्योंकि कुंभ चारों नगरी में से कहीं ना कहीं हर तीन साल में आयोजित होता है। माघ माह में आयोजित होने वाला कुंभ बहुत ही महत्व का होता है।
Related Articles
उपासना टीवी, दिल्ली एनसीआर से संचालित प्रतिष्ठित धार्मिक हिंदी मीडिया संसथान है। जो विगत 13 वर्षों से धर्म और सांस्कृतिक मीडिया में अग्रसर है। उपासना टीवी में हम आपकी धार्मिक समाचार को प्रकाशित करते हैं। आप अपनी खबरें और सुझाव हमें upasana.tv@gmail.com पर भेज सकते हैं या 9312827955 पर Whatsapp और 7011103242 पर Call कर सकते हैं।