नागवासुकि मंदिर (प्रयाग) इलाहाबाद
नागवासुकि मंदिर इलाहाबाद, दारागंज मोहल्ले के उत्तरी छोर पर गंगा के किनारे स्थित है। इस मंदिर में नागवासुकि देव का पूजन होता है। नागवासुकि को शेषराज, सर्पनाथ, अनंत और सर्वाध्यक्ष कहा गया है। भगवान शंकर और विघ्नहरण गणेश इन्हें अपने गले में माला की तरह धारण करते हैं। पद्म पुराण में इन्हें संसार की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का कारण कहा गया है-
नमामि त्वां शाश्वतं शेष राजम्।
विश्वोत्पत्ति स्थान संसार हेतुं॥
नागेशं त्वां सर्पनाश हयनन्तम्।
सर्वाध्यक्षं वासुकिं त्वां नमामि॥
पुराण में कहा गया है कि गंगा स्वर्ग से गिरी तो वे पृथ्वी लोक से पाताल लोक में चली गईं। पाताल लोक में उनकी धार नागवासुकि के फन पर गिरी, इस स्थान पर भोगवती तीर्थ की सृष्टि हुई। नागवासुकि और शेष भगवान पाताल लोक से चल कर वेणीमाधव का दर्शन करने प्रयाग आए, तो भोगवती तीर्थ भी यहां आ गया।
नागवासुकि के साथ भोगवती तीर्थ का वास माना जाता है। नागवासुकि मंदिर से पूरब की तरफ गंगा के पश्चिम हिस्से में भोगवती तीर्थ माना जाता है। बरसात के दिनों में जब गंगा में बाढ़ होती है, तब इसका जल नागवासुकि मंदिर की सीढ़ियों तक पहुंच जाता है। श्रद्धालु तब भोगवती तीर्थ में स्नान करते हैं।
सन् सत्रह सौ उनचालीस में नागपुर के शासक रघुजी भोसले ने इलाहाबाद पर हमला किया। उन्होंने इलाहाबाद सूबे के प्रधान शासक शुजा खान को लड़ाई में हराकर मार डाला। मराठा सैनिकों ने इलाहाबाद शहर को बुरी तरह लूटकर कंगाल बना दिया। राजा के राज पंडित श्रीधर ने जीर्ण नागवासुकि मंदिर का फिर से निर्माण कराया।
कहते हैं मराठा राजा को कुष्ठ रोग हो गया था। राज पंडित ने मानता मानी थी कि अगर राजा रोगमुक्त हो जाएगातो वे मंदिर का जीर्णोद्धार कराएंगे, राजा का रोग दूर हो गया। कृतज्ञ राज पंडित ने मंदिर के साथ ही पक्के घाट का निर्माण करा दिया।
आजादी के बाद नागवासुकि घाट पर जीर्णोद्धार उत्तरप्रदेश की कांग्रेस सरकार के शासनकाल में हुआ। पद्मपुराण के पातालखंड में कहा गया है कि पाताल क्षेत्र की उत्तरी सीमा नागवासुकिके पास समाप्त होती है। इस क्षेत्र में अनेक लोगों का निवास है। इसी क्षेत्र में एक नागकुंड बताया गया है। इस नागकुंड में नहाकर नागवासुकि और शेषनाग की पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है और परिवार में किसी को सांप काटने का भय नहीं रहता। इस नागकुंड का अब पता नहीं चलता।
प्रयाग के बारे में लिखी गई कई किताबों से यह पता चलता है कि नागवासुकि क्षेत्र में विषधर नागों का निवास था। ब्रिटिश काल में लिखी गई एक पुस्तक से पता चलता है कि पुराने जमाने में गंगा की धारा भारद्वाज आश्रम के नीचे से बहती थी, लेकिन नागवासुकि टीला उस जमाने में भी मौजूद था। इसके आसपास ऊंची धरती थी, जिस पर घना जंगल था, इस जंगल में विषैले नाग बड़ी संख्या में थे।
नागवासुकि मंदिर में शेषनाग और वासुकिनाग की मूर्तियां हैं। कुंभ, अर्द्धकुंभ, माघ मेले और नागपंचमी के दिन लाखों तीर्थयात्री इस मंदिर में दर्शन-पूजन करने आते हैं।
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