2016 का मकर संक्रांति 14 जनवरी या 15 जनवरी को ?
-शिवयोगी श्रीप्रमोदजी महाराज
शुक्रवार 1 जनवरी 2016 को पौष कृष्ण पक्ष की सप्तमी उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के योग से प्रारम्भ हो गयी है। नए ईस्वी शनाब्द वर्ष 2016 के पहले माह में गुरूवार 14 जनवरी पौष शुक्ल पक्ष की पंचमी को देवताओ की अंतिम रात्रि [ दक्षिणायन ] के अंतिम तथा देवताओ के उत्तरायण के पहले दिन धनु मलमास का कालांश प्रभाव समाप्त हो जाएगा। इसी दिन भुवन भास्कर सूर्य देव अयन बदल कर धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश कर उत्तरायण हो जायेगे। इसी दिन देवताओ का ब्रह्ममुहूर्त “मकरसंक्रांति” पर्व होगा।
विशेष ध्यान देने योग्य
14 जनवरी की रात्रि 01 बजकर25 मिनिट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगे अर्थात “मकरसंक्रांति” पूर्णरूप से 15 जनवरी को ही मानी जायेगी।
इस राशि का स्वामी शनि है।
वायु तत्व प्रधान है।
प्रगतिपर्व मकर संक्रांति
हिन्दुओ के अधिकाँश देवताओँ का पदापर्ण उत्तरी गोलार्ध में ही हुआ है और भारत भी उत्तरी गोलार्ध में ही है ; के होने से “मकर-संक्रांति” के दिन सूर्य के उत्तरायण होने को अन्धकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। “मकर-संक्रांति” से ही दिन में वृद्घि होना प्रारम्भ होता है और क्रमशः रात का समय छोटा होने लगता है। इसप्रकार “मकर-संक्रांति” को प्रकाश में वृद्घि होती है और अन्धकार में कमी होती है।
चूँकि सूर्य ऊर्जा का श्रोत है। अतः इसदिन से दिन में वृद्घि के साथ सम्पूर्ण जीव जगत की चेतना एवं कार्यशक्ति में वृद्घि होती है। यही कारण है कि “मकर-संक्रांति” को पर्व के रूप में मनाया जाता है।
गीता के अनुसार
- जिन्हें ब्रह्म का बोध हो गया है वो योगी दिन के प्रकाश ( उत्तरायण ) में अपना शरीर छोड़ते है। ऐसे योगी पुनः जन्म नही लेते है।
- जो योगी रात के अँधेरे ( दक्षिणायन ) में शरीर छोड़ते है ये चन्द्रलोक में जाकर पुनः जन्म लेते है। इसप्रकार सूर्य के उत्तरायण की स्थिति में प्रकाश ( शक्ति ) की वृद्घि के साथ साथ सम्पूर्ण जीव जगत की चेतना एवं कार्यशक्ति में भी वृद्घि होती है। यही कारण है कि सूर्य के उत्तरायण की स्थिति को शुभ माना जाता है।
- संक्षेप में “मकर-संक्रांति”
● स्नान-ध्यान करने
● दान-पूण्य करने
● खाने-खिलाने और
● हर्ष मनाने का पर्व है ||
● प्रगति के सूचक का पर्व है ||
● प्रगति ओजस्विता का पर्व है |[मकर राशि में सूर्य का आगमन अर्थात देवताओं का दिन प्रारम्भ मकर सक्रांति का धर्म, दर्शन तथा खगोलीय दृष्टि से अपना विशेष महत्व है। इसकारण मकर संक्रांति वैदिक ज्योततिष और शास्त्रों में हर महीने को दो भागो में बांटा है जो चन्द्रमा की गति पर निर्भर है प्रथम कृष्ण पक्ष दूसरा।शुक्ल पक्ष|| इसतरह वर्ष को भी दो भागो में बांटा गया जो सूर्य की गति पर निर्भर है जो उत्तरायण और दक्षिणायन के नाम से जाना जाता है ||मकर सक्रांति के दिन से सूर्य उत्तर की ओर आने लगता है || मकर संक्रांति को सूर्य का धनु से मकर राशि में आगमन के रूप में महत्व दिया गया || धनु राशि में सूर्य का आगमनमलमास के रूप में जाना जाता है ||
मकर राशि शनि की राशि है जो सूर्य का पुत्र है, मकर राशि में सूर्य के आगमन के समय को ही मकर सक्रांति कहा जाता है ||
इस राशि में सूर्य के आने से मलमास समाप्त हो जाने के कारण, यह एकमात्र पर्व है जिसे सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है ||
मकर सक्रांति के दिन ही गंगा ने सगर के पुत्रों का उद्धार किया था और गंगा सागर में मिली थी || पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था || उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएं या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती है या पुनर्जन्म के चक्कर से उन्हें छुटकारा मिल जाता है || दक्षिणायन में देह छोड़ने पर बहुत काल तक आत्मा को अंधकार का सामना करना पड़ता है || इसलिए मृत्यु हो तो प्रकाश में हो जिससे साफ-साफ दिखाई दे कि हमारी गति और स्थिति क्या है || भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है उत्तरायण के 6 मास के शुभ काल में जब सूर्य देव उत्तरायण होते है और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है तो
इस प्रकाश में शरीर का त्यागने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता || ऐसे व्यक्ति ब्रह्म को प्राप्त करते हैं ||
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