Jyotish

कैसे करें? नवरात्रि में ग्रह शांति -प. सोमेश्वर जोशी

पं. सोमेश्वर जोशी
Mo. 9907058430

आदिशक्ति के नौ रूप नवदुर्गा इन नौ ग्रहों के शुभ और अशुभ प्रभाव को नियंत्रित करती है।

शैलपुत्री – सूर्य,
चंद्रघंटा – केतु,
कुष्माण्डा – चंद्रमा,
स्कन्दमाता – मंगल,
कात्यायनी – बुध,
महागौरी – गुरु,
सिद्धिदात्री – शुक्र,
कालरात्रि – शनि,
ब्रह्मचारिणी – राहु

नवरात्रि में नो दिनों तक देवी दुर्गा के नो रूपों की आराधना कर न सिर्फ शक्ति संचय किया जाता है वरन नव ग्रहों से जनित दोषों का समन भी किया जाता है

उनकी आयु, संख्या और सप्शती पाठो की संख्या से भीहोती हे अभीष्ट फल की प्राप्ति

पंडित जी ने विशेष रूप से बताया की भक्तगण सप्तशती पाठ करते हे परन्तुसप्तशती पाठो की संख्या,कन्याओ की पूजा मेंसंख्या से भी अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। कान्याओ संख्या का भी महत्त्व हे कन्याओ की आयु १० वर्ष से अधिक नहीं होना चाहिए तथा हर वार को अलग-अलग एक से कई लाख गुना फल भी मिलने का विधान हे दुर्गासप्शती में हर प्रकार के उपाय के मन्त्र दिए हुए हे जिससे हर प्रकार के इच्छाओ की पूर्ति की जा सकती हे, विशेष साधना, अनुष्ठान हेतु योग्य विद्वान, आचार्य से परामर्श ले कर करना चाहिए।

नवरात्री पर कुछ विशेष मन्त्र माला

बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये

“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥”
(अ॰१२,श्लो॰१३)

अर्थ :- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

सब प्रकार के कल्याण के लिये

“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”
(अ॰११, श्लो॰१०)

अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।

दारिद्र्य-दु:खादिनाश के लिये

“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥”
(अ॰४,श्लो॰१७)

अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दया‌र्द्र रहता हो।

 

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