आस्था और विश्वास के बूते प्रमुख स्थान बनाए हुए है देव नगरी हरिद्वार
अनिल कुमार श्रीवास्तव, उपासना डेस्क: जीवित दर्जा प्राप्त पवित्र नदी गंगा के तट पर बसा तमाम छोटे बड़े मंदिरों से सुसज्जित आस्था नगरी हरिद्वार आस्था और विश्वास के बूते आज भी प्रमुख स्थान बनाए हुए है।तटस्थ पर्वत संजोए ऋषिकेश और पवर्त श्रंखला पर नीलकंठ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध भगवान शिव के मंदिर की आभा तो देखते ही बनती है।
उत्तराखण्ड के सीमावर्ती जिले हरिद्वार की संस्कृति और धार्मिकता नाम को ऐसे चरितार्थ करती है मानो देव नगरी हरि के द्वार आ गए हों।गंगा नदी के किनारे आस्था की छटा बिखेरते इस शहर में हर रोज पर्व सा लगता है।शाम को गंगा आरती से पूर्व ही समूचा शहर दुल्हन सा सजा दिखाई देता है।आकर्षक वस्त्रों, पूजन सामग्री से लेकर जरूरत की हर चीज व लुभावनी सामग्रियों से लैस दुकाने बिजली से जगमगा जाती हैं।आरती के समय तमाम छोटे बड़े घाटों से भरी हरि की पौड़ी का श्रंगार तो देखते ही बनता है।दोपहर बाद से ही गंगा मंदिर व हरि की पौड़ी की सीढ़ियों पर अपनी जगह सुरक्षित कर लोग श्रद्धा भाव से भक्त डेरा डाल देते हैं।लगभग साढ़े 6 बजे आरती की शुरुआत के साथ ही भारी संख्या में श्रद्धालु जयकारे लगाते देखे जा सकते है।वैसे तो भक्तगण 24 घण्टे स्नान करते हैं लेकिन ब्रम्ह मुहूर्त से गंगा स्नान में तेजी आ जाती है जो आरती पूर्व तक बरकरार रहती है।गंगा किनारे बोतल बेचने वालों की भरमार है भक्त इनमें गंगा जल भर कर अपने अपने घरों में ले जाते हैं जिसे कई धार्मिक अवसरों पर उपयोग में लाते है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा गंगा नदी को जीवित मनुष्य का दर्जा दिए जाने के बाद गंगा नदी की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है लेकिन अभी भी तमाम संदेशो के बाद भी पूरी तरह से जन जागरूकता नही आ पाई है।सेवा, सुरक्षा में ततपर उत्तराखण्ड पुलिस की मुस्तैदी के बावजूद गंगा किनारे अस्थाई अतिक्रमण आसानी से देखा जा सकता है।कही कही यह अतिक्रमण शहर में जाम का पर्याय बन जाता है।पालीथीन , साबुन उपयोग पर पाबंदी के सन्देश तो प्रसारित किये जा रहे हैं लेकिन गन्दगी दूर रखने की और जन जागरण की जरूरत है।देवियों को समर्पित दो प्रमुख मंदिर मनसा देवी मंदिर और चंडी देवी मन्दिर हरिद्वार परिक्षेत्र में ही आते हैं।यहां श्रद्धालुओं की लंबी कतारें देखने को मिलती है।पहले यहॉ दर्शन बड़ी कठिनाई से पद यात्रा से ही मिल पाती थी है।अधुनिकता ने इस यात्रा को सफल बना दिया।अब उड़न खटोला से कम समय व मेहनत में दर्शन किये जा सकते हैं।कुछ श्रद्धालु अब भी पद यात्रा कर दर्शन करते हैं और कुछ उड़न खटोला से।सप्तऋषि घाट का भी विशेष महत्व है।इसके आस पास भारत माता मंदिर, वैष्णो मंदिर सहित दर्जनो मंदिरो में भक्त आस्था रस में डूबे रहते हैं।शांति कुंज में तो नियम और सफाई देखते ही बनती है।शांति कुंज श्रद्धालुओं को निःशुल्क भोजन भी उपलब्ध कराता है।हरे भरे शांति कुञ्ज में हिमालय मंदिर और बौद्धिक साहित्य की तो बात ही निराली है।भगवान शिव को समर्पित कनखल का मंदिर भी प्रमुख स्थान बनाए हुए है।
छोटी बड़ी सुरम्य पहाड़ियों के बीच गंगा नदी की सुंदरता बढ़ाता ऋषिकेश कई धार्मिक स्थानो का रास्ता तय करता है।नीलकण्ठ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, रूद्र प्रयाग, देवप्रयाग आदि प्रमुख है।
यहां पर रिवर राफ्टिंग काफी मशहूर है लहरों में कश्ती ले जल से खेलते हुए पार करने का आनन्द चित्त में उत्साह भर देता है।यहां तमाम घाटों के साथ राम झूला, लक्ष्मण झूला, 13 मंजिला मंदिर, त्रिवेणी घाट की महिमा अद्वितीय है।भगवान शिव को समर्पित नीलकण्ठ मंदिर का रास्ता यही से है।पहाड़ी पर स्थित नीलकण्ठ मंदिर में भगवान शिव के साथ नन्दी की भी पूजा की जाती है।श्रद्धालुओं की भीड़ की वजह से मंदिर में कतार के साथ जा दर्शन कर तुरत निकलना होता है विधिवत पूजा मुख्य मन्दिर से बाहर मंदिर में करनी होती है।पास में पार्वती माता मंदिर भी है।उत्तराखण्ड के इस हिस्से में श्रद्धालुओं की अधिकता और पहाड़ की ऊँचाई की वजह से महंगाई भी अधिक है।धर्म शाला से लेकर होटलों का किराया अन्य सामान्य शहरों से अधिक है।खाद्य सामग्री भी ऊंचे कही कही मनमाने रेट पर उपलब्ध होती है।दार्शनिक स्थल होने की वजह से यात्रा किराया भी काफी मंहंगा है।मगर श्रद्धा अर्थ नही देखती यह कहावत यहाँ चरितार्थ होती है।
पहाड़ो से पृथ्वी पर पूरे वेग से गिरने वाली गंगा नदी को जीवित मनुष्य का दर्जा दिए जाने के बाद गंगा स्वच्छता पर आधिकारिक तौर पर तो बल दिया गया लेकिन सार्थक ,प्रभावी और सकारात्मक जनजागरण की जरूरत है।प्रयास किया जाय की पॉलीथिन और गन्दगी गंगा में न फेंकी जाय और यदि कोई अबोध गन्दगी फेंकता भी है तो पहले वह गन्दगी स्वयं साफ किया जाय और प्यार से समझाया जाय।पुलिसिया रुतबे से डर तो पैदा हो सकता है लेकिन जन जागरण और अधिक कारगर हो सकता है।