देवोत्थान एकादशी 11 को, वैवाहिक प्रयोजन की शुरुवात
देवोत्थान एकादशी, देवउठनी एकादशी, देवउठान एकादशी, देवउठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी 10 एवम् 11 नवंबर को विभिन्न सम्प्रदायो के मतांतर नियमानुसार अलग अलग मनायी जायेगी। ज्योतिर्विद् पं. सोमेश्वर जोशी ने बताया की एकादशी तिथि प्रारम्भ 10 को सुबह 11.21 बजे, एकादशी तिथि समाप्त 11 नवम्बर को 9:12 बजे होगी इस प्रकार दोनों दिन एकादशी होने से 10 को स्मार्त की और 11 को वैष्णव, निंबार्क संप्रदाय कार्तिक शुक्ल एकादशी देव प्रबोधनी छोटी दीपावली के रूप में मनायेगे।
भगवान विष्णु को चार माह बाद पूजा-पाठ कर क्षीर सागर में निद्रा से उठाया जाएगा। इसी दिन से सभी शुभ कार्य विवाह, यात्रा भवन निर्माण जो नहीं गात चार महीनो से वर्षा आदि कारणों से शास्त्रो में निषिद्ध था अब प्रारम्भ हो जायेगा देव प्रबोधिनी एकादशी के बाद शुभ मुहूर्त देखकर शुभ कार्य प्रारंभ किए जा सकता है .
देवउठनी एकादशी को तुलसी का विवाह सालिगराम के साथ हिंदू रीति-रिवाज के साथ किया जाता है। तुलसी विवाह के समय भगवान विष्णु और माता तुलसी पर लगी हल्दी का शेष भाग विवाह योग्य युवक-युवतियों पर लगाने से उनका विवाह जल्द हो जाता है।
जिन दंपत्तियों के कोई संतान या लड़की नहीं है, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।
विवहादि 11 नवंबर से प्रारम्भ हो कर इस वर्ष 12 दिसंबर तक होंगे पुनः अगले वर्ष 16 जनवरी से प्रारम्भ हो जायेगे।
पं. सोमेश्वर जोशी के अनुसार, इस वर्ष नवम्बर में 11,12,16,23,24,25 और 30 को तथा दिसंबर में 1,3,8,9,12 दिनांक तक विवाह मुहूर्त रहेगे। इस प्रकार केवल इस वर्ष के केवल अंतिम 12 मुहूर्त शेष है।
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