1400 वर्षों से चीनियों का आस्था का केंद्र रहा प्रयागराज
चीन और भारत की सांस्कृतिक संबंध सदियों पुराने हैं। प्राचीन काल से ही चीन भारत की समृद्ध संस्कृति से आकर्षित रहा है। इस आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र रहा है – प्रयागराज।
सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत की यात्रा की थी। उन्होंने प्रयागराज को भारत का सबसे समृद्ध और सुंदर शहर बताया था। ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वृतांत में लिखा है कि प्रयागराज में गंगा और यमुना नदियों का संगम है और यहां की जलवायु बहुत ही अनुकूल है। यहां के लोग विनम्र, सुशील और विद्वान हैं।
ह्वेनसांग ने प्रयागराज में बड़े पैमाने पर धार्मिक उत्सवों का वर्णन किया है, जिसमें लाखों लोग शामिल होते थे। उन्होंने यह भी लिखा है कि प्रयागराज में एक प्रसिद्ध मंदिर था, जहां लोग दान करने आते थे।
चीनी यात्री ने लिखा है कि नगर में एक देव मंदिर है (किले के भीतर वर्तमान में पातालपुरी मंदिर) जो अपनी सजावट और विलक्षण चमत्कारों के लिए जग प्रसिद्ध है। लोगों की मान्यता है कि यहां पर एक पैसा चढ़ाने से एक हजार मुद्राएं दान करने के बराबर पुण्य मिलता है। मंदिर के आंगन में विशाल वृक्ष (अक्षय वट) है, जिसकी शाखाएं व पत्तियां बहुत दूर तक फैली रहती हैं। यहां स्नान करने मात्र से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
दो नदियों के बीच सुंदर और स्वच्छ बालू से ढका मैदान है। यहीं संगम पर देश के सबसे समृद्ध लोग आते हैं और अपना सर्वस्व दान कर चले जाते हैं। प्रयागराज की मेजा तहसील में बेलन व टोंस नदी के जमाव में पुरा पाषाण काल, मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल का सांस्कृतिक विकास क्रम भी देखने को मिलता है।
प्रयागराज का पुरातात्विक महत्व
प्रयागराज का पुरातात्विक महत्व भी कम नहीं है। यहां हुए उत्खनन में पाषाण काल से लेकर मध्यकाल तक के अवशेष मिले हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि प्रयागराज प्राचीन काल से ही एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।
आधुनिक काल में प्रयागराज
आज भी प्रयागराज भारत का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र है। यहां हर बार कुंभ मेला लगता है, जिसमें दुनिया भर से लाखों लोग आते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार भी प्रयागराज के विकास के लिए कई प्रयास कर रही है।
प्रयागराज भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अनमोल रत्न है। यह शहर प्राचीन काल से ही लोगों को आकर्षित करता रहा है और आज भी यह अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है।
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