खरमास प्रारंभ, खरमास से जुड़ी कुछ और बातें
16 दिसंबर सोमवार 2024 से खर मास प्रारंभ है। खरमास को मलमास भी कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, खरमास का महीना तब शुरू होता है जब सूर्य देव बृहस्पति की राशि धनु या मीन में प्रवेश करते हैं। इस बार खरमास 15 दिसंबर 2024 की रात 9:56 बजे शुरू होकर 14 जनवरी 2025 तक रहेगा।
सनातन धर्म में खरमास का विशेष महत्व है। इस दौरान कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। साथ ही नवीन कार्य की शुरुआत भी नहीं की जाती है। अनदेखी करने से जातक या व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त नहीं होता है। ज्योतिषियों की मानें तो खरमास के दौरान गुरु का प्रभाव शून्य हो जाता है। इसके लिए शुभ कार्य करने का औचित्य नहीं रह जाता है। देवगुरु बृहस्पति शुभ कार्य या काम के कारक माने जाते हैं। इसके लिए गुरु ग्रह का उदय रहना जरूरी है। खरमास के दौरान सूर्य देव की पूजा करने से आरोग्य जीवन का वरदान प्राप्त होता है। साथ ही करियर या कारोबार में जातक को मनमुताबिक सफलता मिलती है। साधक श्रद्धा भाव से खरमास के दौरान सूर्य देव की उपासना करते हैं।
खरमास से जुड़ी कुछ और बातें
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार,जब सूर्य देव देवताओं के गुरु बृहस्पति की राशि में जाते हैं, तो खरमास लगता है। खरमास में सूर्यदेव का तेज धीमा होता है। खरमास में कोई भी नया कार्य नहीं करना चाहिए।खरमास में तांबे के बर्तन में बने या रखे हुए भोजन या पानी का सेवन नहीं करना चाहिए।खरमास में लोहे की चीज़ों का घर लाना भी अशुभ माना जाता है।
खर मास का महत्व
खरमास को खर मास कहने के पीछे भी पौराणिक कथा है। खर का तात्पर्य गधे से है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, सूर्य अपने सात घोड़ों यानी रश्मियों के सहारे इस सृष्टि की यात्रा करते हैं। परिक्रमा के दौरान सूर्य को एक क्षण भी रुकने और धीमा होने का अधिकार नहीं है। लेकिन अनवरत यात्रा के कारण सूर्य के सातों घोडे़ हेमंत ऋतु में थककर एक तालाब के निकट रुक जाते हैं, ताकि पानी पी सकें। सूर्य को अपना दायित्व बोध याद आ जाता है कि वह रुक नहीं सकते, चाहे घोड़ा थककर भले ही रुक जाए। यात्रा को अनवरत जारी रखने के लिए तथा सृष्टि पर संकट नहीं आए, इसलिए भगवान भास्कर तालाब के समीप खड़े दो गधों को रथ में जोतकर यात्रा को जारी रखते हैं। गधे अपनी मंद गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे, इस कारण सूर्य का तेज बहुत कमजोर हो धरती पर प्रकट होता है। मकर संक्रांति के दिन पुन: सूर्यदेव अपने घोड़ों को रथ में जोतते हैं, तब उनकी यात्रा पुन: रफ्तार पकड़ लेती है। इसके बाद धरती पर सूर्य का तेजोमय प्रकाश बढ़ने लगता है।
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